इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे यदि आप रबड़ की खेती की शुरुआत करना चाहते हैं तो कैसे कर सकते हैं ।
भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक देश है । मुख्यता दक्षिण भारत में रबर की की खेती की जाती है । इसके अलावा पूर्वोत्तर में भी रबर की खेती की जाती है । रबर की खेती की शुरुआत भी केरल से ही हुई थी । जो कि वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक राज्य है । छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए यह खेती काफी फायदेमंद साबित होती है । इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे यदि आप रबड़ की खेती की शुरुआत करना चाहते हैं तो कैसे कर सकते हैं ।
उपयुक्त जलवायु
रबर के पेड़ों की वृद्धि के लिए गहरी दोमट लाल एवं लेटराइट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है । बेहतर होगा यदि आप जूनियर जुलाई के महीने में रबड़ के पौधों का रोपण करें । रबड़ के पौधों के लिए न्यूनतम 200 सेंटीमीटर वर्षा जरूरी है । यदि वातावरण के तापमान की बात करें तो 21 से 35 डिग्री सेल्सियस और उष्ण आर्द्र जलवायु में पौधे तेजी से वृद्धि करते हैं ।
कैसे होता है उत्पादन
रबर यूफॉर्बिएसिई कुल तथा अर्टिकेसिई, एपोसाइनेसिई कुल तथा ग्वायुले इत्यादि के बड़े बड़े वृक्षों, कुछ लताओं और झाड़ियों के रबरक्षीर से प्राप्त होता है । पाँच वर्ष के हो जाने पर पेड़ से रबरक्षीर निकलना शुरू होता है । और लगभग 40 वर्षों तक निकलता रहता है।एक एकड़ में लगभग 150 पेड़ लगाए जा सकते हैं । और उनसे 70 किलो से ढाई सौ किलो तक रबड़ प्राप्त किया जा सकता है । एक पेड़ से एक साल मे 2.75 किलो तक रबर प्राप्त हो सकता है। और इसके पौधे को समय-समय पर पर्याप्त मिश्रित उर्वरक की आवश्यकता होती है।
कैसे प्राप्त होता है लेटेक्स
लेटेक्स (रबरक्षीर) को रबड़ के पेड़ की छाल से टैपिंग द्वारा प्राप्त किया जाता है। लेटेक्स के बहाव को बढ़ाने के लिए पेड़ की छाल को एक विशेष तरीके से काटा जाता है । पेड़ के नीचे एक जिंक या लोहे की एक टोंटी लगाई जाती है जिससे की लेटेक्स को एकत्रित किया जा सके । अधिकतम लेटेक्स प्राप्त करने के लिए टेपिंग को अधिक अंदर या गहरे तक लगाया जाता है। रबड़ पौधों से सुरक्षित लेटेक्स और लेटेक्स सांद्रण, शुष्क रिब्ड शीट रबड़, ड्राई क्रीप रबड़ तथा ड्राई सॉलिड-ब्लाक रबड़ आदि प्राप्त की जा सकती है। जिसे अलग अलग तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है ।
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AGRICULTURE NEWS । आज की खेती की खबर 19/08/2020 |
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FERTIGATION - AN EFFICIENT METHOD IN AGRICULTURE. |
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